KN Rao Technique for Moon
गत दिनों श्री के एन राव जी की फलित ज्योतिष पर केंद्रित एक पुस्तक के अध्ययन के अंतर्गत चंद्र से संबंधित एक विशेष सूत्र पर ध्यान केंद्रित हुआ। श्री केन राव व उनके ज्योतिष गुरु श्री योगी भास्करानन्द जी के मध्य एक चर्चा के दौरान वे मिस्टर केन राव को समझाते हैं “देखो राव! तुम्हारा और मेरा चंद्र एक दूसरे से त्रिएकादश स्थान पर स्थित है। इसका अर्थ हुआ कि तुम ज्योतिष में मेरे अधूरे अनुसंधानों को पूरा करोगे।”
यदि हम इस उक्ति के माध्यम से सूत्र का निरूपण करें तो निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि चंद्रमा जो की मन का एवं गत-आगत में घटित होने वाली घटनाओं का कारक है, का संबंध अपनी कुंडली में संबधित की कुंडली से परस्पर देखेंगे तो वह उस संबध की विशेषता को इंगित करेगा।
यदि किसी का संबंध आपसे विद्या अध्ययन आदि कारणों के अंतर्गत है तो आप पाएँगे की उस व्यक्ति-विशेष का चंद्र आपके चंद्रमा से पंचम-नवम स्थान को आन्दोलित करता होगा अथवा जिस व्यक्ति का आपके जीवन को बदलने में महत्वपूर्ण योगदान रहा होगा उस व्यक्ति से निशानाथ कहीं न कहीं अष्टम में आलोकित हो रहे होंगे।
त्रिएकादश संबंध काम्य भावनाओं में भी बहुत योगदान देता है एवं दो व्यक्तियों के परस्पर विचारों के मेलजोल को इंगित करता है। कारण यह है कि तृतीय भाव वैचारिकता का सूचक होता है और एकादश लाभ का। यह संबंध वैचारिक विमर्ष से लाभान्वित होने के योगों अथवा स्वस्थ वैचारिक लेन-देन में सहायक होता है।
मुमुक्षुओ के लिए द्विर्द्वादश संबंध श्रेयस्कर है वहीं व्यापारियों की कुंडली में मयंक एक दूसरे से केंद्र में शोभायमान होते हैं। संभवतः यही कारण है कि जब विवाह आदि प्रकरण में कुंडलियों का मिलान किया जाता है तब तारापति के सम-सप्तक योग को वरीयता दी जाती है।